न्यायकर्मी

संस्था का विधान

(1) यह संघ राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ कहलायेगा।
(2) संघ का केन्द्रीय कार्यालय जयपुर में होगा।
(3) उद्देश्यः-

संघ के उद्देश्य निम्नलिखित होंगेः-

  1. कर्मचारियों  के आर्थिक, नैतिक एवं सांस्कृतिक स्तर को उन्नत करना।
  2. भ्रातृत्व एकता एवं पारस्परिक सहयोग की प्रवृत्ति को विकसित करना।
  3. कर्मचारियों में आत्मविश्वास, मानवता, स्वाभिमान एवं आत्मनिर्भरता की भावना को जाग्रत करना।
  4. कर्मचारियों के लिये जीवनयापन, वेतन, विश्रामवृत्ति कार्य व सेवा संबंधी अधिकाराें काे प्राप्त करना।
  5. कर्मचारियों की योग्यता व कार्य कुशलता में वृद्धि करना।
  6. कर्मचारियों काे विविध सहायता प्रदान करना एवं उनके पक्ष को विधिक रूप से सुढृढ़ करना।

(4) परिभाषा -
विधान व विषयान्तर्गत बनाये गये नियमों , उपनियमों  में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ निम्नांकित होगाः-

  1. संघ का अर्थ राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ है।
  2. शाखा का अर्थ राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ की जिला शाखा से है।
  3. जिला का अभिप्राय जिला एवं सेशन न्यायालय के विस्तारित क्षैत्राधिकार से है।
  4. कर्मचारियों का अर्थ न्यायिक कर्मचारियों से है।
  5. सदस्य का अर्थ निर्धारित सदस्यता पत्र भरकर प्रवेश शुल्क तथा निश्चित अवधि से निर्धारित वार्षिक सदस्यता पत्र भरकर प्रवेश शुल्क तथा निश्चित अवधि में निर्धारित वार्षिक सदस्यता शुल्क देने वाले कर्मचारियों से है।
  6. परिषद् का अर्थ संघ की केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् से है।
  7. केन्द्रीय कार्यालय का अर्थ संघ के केन्द्रीय प्रधान कार्यालय से है।
  8. वर्ष का अर्थ संघ के वर्ष से है, जो एक जनवरी से प्रारम्भ होकर 31 दिसम्बर को समाप्त होगा।
  9. समिति का अर्थ संघ की केन्द्रीय/जिला कार्यकारिणी द्वारा गठित समिति से है।

(5) कार्यक्षेत्रः-
संघ का कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण राजस्थान होगा।
(6) सदस्यताः-

  1. प्रत्येक स्थायी व अस्थायी न्यायिक कर्मचारी संघ का सदस्य बन सकेगा। इसमें ऐसे न्यायिक कर्मचारी भी सम्मिलित होंगे, जिन्हें प्रशासन द्वारा सेवा से निष्कासित कर दिया गया हो, लेकिन उनका मामला किसी भी स्तर पर विचाराधीन है।
  2. सदस्यता के ईच्छुक प्रत्येक कर्मचारीगण सदस्यता पत्र के साथ प्रवेश शुल्क के रूप में ............ रूपये तथा वार्षिक सदस्यता के रूप में ....... रूपये प्रतिवर्ष जमा करवायेगा।
  3. प्रत्येक सदस्य आगामी वर्ष का वार्षिक शुल्क प्रत्येक वर्ष के नवम्बर माह के अन्त तक जमा करायेगा।
  4. संघ का सदस्य किसी राजनैतिक संस्था में भाग नहीं ले सकेगा।

(7) सदस्यता की समाप्तिः-
(अ)

  1. सदस्यता से त्यागपत्र देने एवं त्यागपत्र को संबंधित जिलाध्यक्ष द्वारा स्वीकृत करने पर।
  2. सेवा से मुक्त होने पर।
  3. प्रान्तीय अध्यक्ष द्वारा पृथक करने पर।
  4. संघ का कोई भी सदस्य किसी राजनैतिक संस्था में भाग लेगा, तो उसकी सदस्यता उसी तिथि से स्वतः समाप्त समझी जावेगी, जिस दिन से वह राजनैतिक संस्था में भाग लेगा।
  5. सदस्यता शुल्क निर्धारित समय पर जमा नहीं कराने पर, संघ के प्रति विश्वासघात करने पर, संविधान के नियमों व निर्देशों का पालन न करने पर, संघ की प्रतिष्ठा एवं उद्देश्य में बाधक व असहयोग की वृत्ति अपनाने पर एवं अनुशासन भंग करने पर प्रान्तीय अध्यक्ष द्वारा सदस्यता समाप्त करने पर।

(ब) शाखा, उपशाखा यदि कोई हो तो, के निर्वाचित व मनोनीत पदाधिकारियों एवं प्रतिनिधियों को निलम्बन करने का अधिकार प्रान्तीय अध्यक्ष को होगा।
(स) सदस्यता से पृथक करने अथवा निलम्बन करने से पूर्व संबंधित सदस्य को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिये 15 दिवस का अवसर दिया जाना आवश्यक है।
(द)

  1. संघ की सदस्यता त्यागने अथवा पृथक हो जाने पर पुनः सदस्यता के लिये आवेदन पत्र संबंधित जिलाध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत करने एवं उसकी संस्वीकृति होने पर ही सदस्यता पुनः प्राप्त हो सकेगी।
  2. प्रान्तीय अध्यक्ष द्वारा समाप्त की गई सदस्यता को, पुनः प्राप्त करने के लिये केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के समक्ष आवेदन करना होगा एवं उसकी संस्वीकृति होने के पश्चात् ही सदस्यता पुनः प्राप्त हो सकेगी।

(8) शाखाऐं व उपशाखाऐं -

  1. संघ की प्रत्येक जिले में एक शाखा होगी।
  2. संघ की उपशाखा जिला मुख्यालय के अलावा उस स्थान पर भी केन्द्रीय कार्यकारिणी की स्वीकृति से खोली जा सकेगी, जहां न्यायिक कर्मचारियों की संख्या 20 से अधिक हो।
  3. केन्द्रीय कार्यालय द्वारा स्वीकृति जारी किये जाने के पश्चात् ही उपर्युक्त शाखाओं तथा उपशाखाओं को वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त होगी।
  4. संघ की किसी भी शाखा एवं उपशाखा को भंग करने एवं चुनाव व्यवस्था तक तदर्थ कमेटी नियुक्त करने के समस्त अधिकार प्रान्तीय अध्यक्ष में निहित होंगे।

(9) शाखाओं एवं उपशाखाओं  का कार्यक्षेत्रः-

  1. जिला शाखा का कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण जिला न्यायक्षेत्र तक होगा।
  2. उपशाखा का कार्यक्षेत्र जहां वह स्थित है, उसी क्षेत्र तक सीमित होगा।
  3. शाखाऐं, उपशाखाऐं केन्द्रीय कार्यालय के तत्वाधान व निर्देशन में  कार्य करेगी। उनका केन्द्रीय कार्यालय से अलग अस्तित्व नहीं होगा, वरन् केन्द्रीय कार्यालय के पूर्णतया अधीन होगी।
  4. शाखाऐं व उपशाखाऐं किसी भी प्रश्न पर राज्य सरकार अथवा उच्च न्यायालय प्रशासन से सीधा पत्र व्यवहार या सम्पर्क स्थापित नहीं कर सकेगी।
  5. केवल असामान्य परिस्थितियों में ही जिला शाखा राज्य सरकार अथवा उच्च न्यायालय से पत्र व्यवहार कर सकेगी एवं उसकी प्रतिलिपि तुरन्त ही केन्द्रीय कार्यालय को प्रेषित की जावेगी एवं केन्द्रीय कार्यालय से सम्पर्क स्थापित किया जावेगा। 

(10) जिला शाखा कार्यकारिणीः-
(1)

(अ) जिला शाखा कार्यकारिणी में 15 सदस्य होंगे, जिसमें आठ पदाधिकारी अर्थात् जिलाध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्री, कोषाध्यक्ष, संयुक्त मंत्री, संगठन मंत्री, प्रचार मंत्री तथा अन्य 7 सहयोगी सदस्य होंगे।
(ब) केन्द्रीय कार्यकारिणी की स्वीकृति से कार्य के विस्तार तथा प्रतिनिधित्व के अनुसार जिला शाखा कार्यकारिणी के सदस्यों की संख्या में वृद्धि की जा सकेगी। जिला शाखा कार्यकारिणी के सदस्यों की अधिकतम संख्या 20 होगी।
(2)

(अ) शाखा के जिलाध्यक्ष का चुनाव प्रत्येक दूसरे वर्ष दिसम्बर माह के तृतीय सप्ताह में कराना आवश्यक होगा। जिलाध्यक्ष का चुनाव उसके संबंधित कार्यक्षेत्र के सदस्यों द्वारा गोपनीय मतदान प्रक्रिया को अपनाते हुए अथवा संयुक्त रूप से आम सभा में होगा। आम सभा की बैठक का कोरम कुल सदस्यों का 2/3 होना अनिवार्य है।
(ब) जिला शाखा की मतदाता सूची को प्रत्येक दूसरे वर्ष के नवम्बर माह के अंतिम सप्ताह में जिले में मौजूद केन्द्रीय कार्यकारिणी का पदाधिकारी यदि कोई हो तो अथवा केन्द्रीय प्रतिनिधि के पास केन्द्रीय कार्यालय को भेजी जाने वाली सदस्यता शुल्क की राशि जमा कराकर प्रमाणित कराना होगा, ऐसा केन्द्रीय कार्यकारिणी का पदाधिकारी अथवा केन्द्रीय प्रतिनिधि मतदाता सूची की एक प्रतिलिपि तथा जिला शाखा द्वारा दी गई सदस्यता शुल्क की राशि केन्द्रीय कार्यालय को एक सप्ताह में आवश्यक रूप से प्रेषित करेगा। उपरोक्त तरीकों से प्रमाणित मतदाता सूची ही चुनाव के लिये वैद्य मानी जावेगी।
(स) मतदाता सूची को प्रमाणित कराये बिना कोई चुनाव कराये जाते है, तो इस प्रकार सम्पन्न किये गये चुनाव वैद्य नहीं माने जायेंगे तथा उस स्थान पर तदर्थ समिति नियुक्त करने का अधिकार प्रान्तीय अध्यक्ष को होगा।
(द) चुनाव सम्पन्न कराने से पहले प्रत्येक शाखा पिछले वर्ष/वर्षो का बकाया सदस्यता शुल्क की राशि केन्द्रीय कार्यालय में जमा करायेगी। जिलाध्यक्ष केन्द्रीय कार्यालय से अदेयता प्रमाण पत्र (नो-ड्युज) प्राप्त करेगा, उसके बाद ही जिले पर मौजूद केन्द्रीय कार्यकारिणी का पदाधिकारी अथवा केन्द्रीय प्रतिनिधि मतदाता सूची को प्रमाणित करेगा।
(3) विलोपित
(4)

(अ) जिलाध्यक्ष अपने निर्वाचित होने के पन्द्रह दिन के भीतर जिला कार्यकारिणी के पदाधिकारियों  एवं सदस्यों को मनोनीत कर उसकी घोषणा प्रसारित करेगा। उपर्युक्त घोषणा न करने पर जिलाध्यक्ष पद रिक्त समझा जायेगा। कालावधि के पश्चात् भी प्रान्तीय अध्यक्ष की स्वीकृति से कार्यकारिणी की घोषणा की जा सकती है और जिलाध्यक्ष वैद्य प्रतिनिधि रह सकेगा। 

(ब) उपशाखा यदि कोई हो तो उसमें  कार्यकारिणी की घोषणा जिलाध्यक्ष द्वारा जिला शाखा कार्यकारिणी के साथ-साथ ही कर दी जायेगी। उपशाखा कार्यकारिणी में पांच पदाधिकारी अर्थात् संयोजक, उपसंयोजक तथा तीन सदस्य होंगे।
(5) केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के स्थानीय सदस्य जिला शाखा कार्यकारिणी के पदेन सदस्य होंगे, परन्तु उनको मत देने का अधिकार नहीं होगा।  
(6) शाखा के जिलाध्यक्ष की अनुपस्थिति में वरिष्ठ उपाध्यक्ष, जिलाध्यक्ष का कार्य करेगा। जिलाध्यक्ष का पद यदि प्रथम 6 माह के भीतर रिक्त हो जावे तो पद रिक्त होने की तिथि से अधिकतम एक मास के भीतर-भीतर चुनाव कराना होगा। इसके बाद जिलाध्यक्ष का पद किसी भी कारण से रिक्त होगा तो वरिष्ठ उपाध्यक्ष शेष अवधि तक कार्य करेगा। 
(7) जिला शाखा कार्यकारिणी कम से कम दो मास में एक तथा साधारण सदस्यों की वर्ष में कम से कम एक मीटिंग होगी, अत्यावश्यक मीटिंग कभी भी बुलाई जा सकेगी।
(8) जिला शाखा कार्यकारिणी के 1/3 सदस्यों द्वारा लिखित में मांग किये जाने पर शाखा कार्यकारिणी की विशेष बैठक 15 दिन की अवधि में जिला मंत्री द्वारा आवश्यक रूप से आयोजित करनी होगी। इस प्रकार आयोजित बैठक भले ही जिलाध्यक्ष की अनुमति से नहीं ली गई हो, किन्तु वैधानिक होगी।
(9) जिला शाखा कार्यकारिणी की बैठक का कोरम साधारणतया सदस्य संख्या का 1/3 होगा, किन्तु महत्वपूर्ण मामलों का निश्चिय उपस्थित सदस्यों के 3/4 बहुमत से निर्णय लिया जाकर दिया जावेगा। जब दोनों और मत बराबर हो तो जिलाध्यक्ष का मत निर्णायक होगा।
(10) शाखा के जिलाध्यक्ष के विरूद्ध अविश्वास के प्रस्ताव पर शाखा के 1/4 सदस्यों के लिखित रूप से लाने पर साधारण सदस्यों की बैठक में बहुमत द्वारा निर्णय होगा। बैठक में सदस्यों की उपस्थिति कुल सदस्यों  की संख्या का 1/2 होना अनिवार्य होगा व निर्णय उपस्थित कुल सदस्यों की संख्या का 1/2 होना अनिवार्य होगा व निर्णय उपस्थिति के 2/3 मतों से होगा।

(11) केन्द्रीय कार्यकारिणीः-
1. केन्द्रीय कार्यकारिणी, प्रान्तीय अध्यक्ष व पदाधिकारियों सहित 30 सदस्यों की होगी, जो कि केन्द्रीय प्रतिनिधियों में से लिये जायेगें। उसके अतिरिक्त दो सदस्य प्रान्तीय अध्यक्ष द्वारा कहीं से भी मनोनीत किये जा सकते है, लेकिन उन्हे मतदान का अधिकार प्राप्त नहीं होगा।
2. केन्द्रीय कार्यकारिणी का प्रान्तीय अध्यक्ष, केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् द्वारा निर्वाचित होगा। केन्द्रीय कार्यकारिणी के शेष 29 सदस्यों का मनोनयन प्रान्तीय अध्यक्ष द्वारा किया जायेगा। कार्यकारिणी का गठन प्रान्तीय अध्यक्ष द्वारा अधिक से अधिक एक मास में किया जायेगा। केन्द्रीय कार्यकारिणी में

  1. प्रान्तीय अध्यक्ष एक
  2. वरिष्ठ उपाध्यक्ष एक
  3. उपाध्यक्ष एक
  4. महामंत्री एक
  5. कोषाध्यक्ष एक
  6. संयुक्त मंत्री एक
  7. संगठन मंत्री एक
  8. प्रचार मंत्री एक
  9. विधि मंत्री एक
  10. शिक्षा एवं सांस्कृतिक मंत्री एक
  11. क्षेत्रीय संगठन मंत्री छः
  12. कार्यालय मंत्री एक
  13. शेष सदस्यगण

3. प्रान्तीय अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है तो, जब तक केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् द्वारा प्रान्तीय अध्यक्ष का निर्वाचन किया जाये, तब तक वरिष्ठ उपाध्यक्ष उक्त पद पर कार्य करेगा। वरिष्ठ उपाध्यक्ष द्वारा पद त्याग करने या हटने पर सभाध्यक्ष केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् का कार्यभार संभालेगा। नया प्रान्तीय अध्यक्ष निर्वाचित करने के लिये केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् की बैठक एक माह में अवश्य बुलाई जावेगी । यदि वरिष्ठ उपाध्यक्ष या सभाध्यक्ष द्वारा मीटिंग बुलाकर चुनाव सम्पन्न नहीं करवाये जाते है, तो महामंत्री द्वारा केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् की बैठक बुलाकर चुनाव करा दिये जाएंगे जिसे वैधानिक माना जायेगा।
4. प्रान्तीय अध्यक्ष का त्यागपत्र स्वीकृत होने तक तदर्थ रूप से कार्य यथावत करता रहेगा।
5. नये प्रान्तीय अध्यक्ष के चयन होने तक केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद्, प्रान्तीय अध्यक्ष को कार्य करने के लिये अधिकृत कर सकती है।

 

(12) केन्द्रीय कार्यकारिणी के कार्य और शक्तियां -
1. ऐसे कदम उठाना, जो संघ के लक्ष्यों और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये आवश्यक है।
2. संघ की समस्त शाखाओं और उपशाखाओं पर नियंत्रण रखना और उनका मार्गदर्शन करना।
3. संघ की केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के आदेशों को क्रियान्वित करना।
4. ऐसे व्यय जिनके लिये बजट में प्रावधान किया गया है, करना तथा बजट के अंतर्गत मदों में परिवर्तन तथा वित्तीय योजनाओं को स्वीकृत करना।
5. जहां अपेक्षित हो, वहां शाखा, उपशाखा बनाने की स्वीकृति देना तथा उनके क्षेत्र में आने वाले विषय निर्धारित करना।
6. धारा 10 (1) (ब) के अनुसार जिला शाखा कार्यकारिणी में सदस्यों की संख्या में वृद्धि किये जाने की स्वीकृति देना।
7. संघ के वैतनिक कर्मचारियों की नियुक्तियां और निष्कासन की स्वीकृति देना तथा उन्हें पुरस्कृत करना।
8. किसी शाखा या उपशाखा द्वारा उठाये गये मुद्दों पर विचार करना तथा उन पर आवश्यक कार्यवाही करना।
9. संघ का वार्षिक प्रतिवेदन और वार्षिक आय-व्यय का ब्यौरा केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के समक्ष पेश करना।
10. यदि आवश्यक हो किसी विशेष व्यक्ति को सलाह के लिये आमंत्रित करना।
11. केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् की बैठक बुलाना, उसके लिये विषय सूची बनाना, तिथि और स्थान निश्चित करना तथा स्वागत आदि के संबंध में प्रबंध करना।
12. धारा 7 के प्रावधानों के अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्यवाही करना।
13. शाखाओं के पदाधिकारियों व प्रतिनिधियों के चुनाव की अवधि, प्रक्रिया निर्धारित करना व चुनाव अवधि आवश्यकतानुसार बढ़ाना।
14. नियम व उपनियम बनाना, केन्द्रीय कार्यकारिणी के निर्देश भी नियम उपनियम होगें।
15. अधिवेशन की तिथि और स्थान निर्धारित करना व मुख्य अतिथि को मनोनीत करना।
16. वर्ष के दौरान किये जाने वाले कार्यो का कार्यक्रम बनाना।
17. वित्तीय मामलों के लिये तथा संघ की सम्पत्ति वसूल करने के उद्देश्य से न्यायालय में वाद चलाने की अनुमति देना।
18. समिति अथवा उपसमिति का गठन करना।


(13) केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक व उसका कोरमः-
1. केन्द्रीय कार्यकारिणी की कम से कम चार महिने में एक बार बैठक अवश्य बुलाई जावे।
2. असाधारण बैठक कभी भी बुलाई जा सकती है।
3. केन्द्रीय कार्यकारिणी के 1/3 सदस्यों द्वारा लिखित में मांग किये जाने पर कार्यकारिणी की बैठक 21 दिवस की अवधि में महामंत्री द्वारा आवश्यक रूप से आयोजित करनी होगी। इस प्रकार से आयोजित बैठक के लिये भले ही प्रान्तीय अध्यक्ष की अनुमति न हो या प्राप्त नहीं की गई हो, बैठक की कार्यवाही वैधानिक होगी।
(14)

1. केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक का गणपूरक (कोरम) साधारणतः 10 होगा एवं निर्णय बहुमत से होंगे। महत्वपूर्ण मामलों के लिये गणपूरक 15 होगा एवं उसका निर्णय उपस्थित सदस्यों के 2/3 मतों  से होगा।
2. पक्ष-विपक्ष में मत बराबर होने पर प्रान्तीय अध्यक्ष का मत निर्णायक होगा।

 

(15) परामर्शदात्री समितिः-
1. परामर्श देने हेतु केन्द्रीय कार्यकारिणी की एक परामर्शदाता समिति होगी, जिसमें अधिकतम सात सदस्य होंगे। इन सदस्यों का मनोनयन केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् द्वारा किया जावेगा। परामर्शदाता समिति के सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा। ये सदस्य समय-समय पर केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठकों में तथा केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् की बैठकों में भी भाग लेगें। परामर्शदात्री समिति के सदस्योंं को मतदान का अधिकार नहीं होगा।
2. कर्मचारियोंं को विधिक सहायता प्रदान करने तथा उनके पक्ष को विधिक रूप से सुढृढ़ करने हेतु केन्द्र तथा जिले में विधिक प्रकोष्ठ का गठन किया जावेगा। केन्द्रीय स्तर पर गठित विधिक प्रकोष्ठ में पांच सदस्य तथा जिला स्तर पर गठित विधिक प्रकोष्ठ में तीन सदस्य होंगे। सदस्योंं का चयन उनका सेवा अनुभव, सेवा नियमोंं व विभागीय नियमोंं का ज्ञान तथा विधि ज्ञान विशेष योग्यता होने पर प्रान्तीय अध्यक्ष द्वारा केन्द्र हेतु अथवा जिलाध्यक्ष द्वारा जिले के लिये किया जावेगा। जिला शाखा का विधिक प्रकोष्ठ केन्द्रीय कार्यालय के विधिक प्रकोष्ठ से निर्देश एवं आवश्यक सलाह प्राप्त करेगा।

 

(16) केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् का गठन, कार्य और शक्तियां :-
1. संघ की सर्वोच्च शक्ति केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् में निहित होगी। प्रतिनिधि परिषद् के सदस्य उस समय मौजूदा जिला शाखाओ के सदस्यों द्वारा चुने जायेगें।
2. जिला शाखा अपने सदस्योंं में 100 सदस्य या उसके अंश पर एक के अनुपात में प्रतिनिधि परिषद् के सदस्य निर्वाचन पद्धति से चुनेगी। प्रत्येक जिला शाखा का कम से कम एक प्रतिनिधि, केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के लिये अवश्य निर्वाचित किया जावेगा।
3.
(अ) केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के सदस्योंं का कार्यकाल चार वर्ष का होगा। इन सदस्योंं के चुनाव कार्यकाल समाप्त होने के बाद केन्द्रीय कार्यकारिणी के निर्देश पर ही होगा। केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के सदस्योंं चुनाव अवधि व प्रक्रिया व केन्द्रीय कार्यकारिणी निर्धारित करेगा।
(आ) केन्द्रीय कार्यकारिणी के प्रान्तीय अध्यक्ष तथा केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के सभाध्यक्ष व उप सभाध्यक्ष का चुनाव प्रतिनिधि परिषद् की बैठक में होाग। चयन की तिथि व प्रक्रिया प्रतिनिधि परिषद् तय करेगी।
(इ) केन्द्रीय कार्यकारिणी के प्रान्तीय अध्यक्ष तथा प्रतिनिधि परिषद् के सभाध्यक्ष व उप सभाध्यक्ष का कार्यकाल पद ग्रहण की तिथि से चार व सात का होगा।
(ई) ऐसा केन्द्रीय प्रतिनिधि जो कि केन्द्रीय कार्यकारिणी का पदाधिकारी अथवा सदस्य है और उसका कार्यकाल पूरा हो गया है, तो वह यथावत अपने पद पर बना रहेगा, जब तक उस क्षेत्र से निर्वाचित होकर अन्य प्रतिनिधि नहीं आ जाता।
(उ) यदि केन्द्रीय प्रतिनिधि का पद चार वर्ष की कालावधि में रिक्त हो जाता है, तो नये प्रतिनिधि का चुनाव केन्द्रीय कार्यकारिणी के निर्देश पर होगा। वह नवनिर्वाचित केन्द्रीय प्रतिनिधि बाकि शेष काल के लिये ही केन्द्रीय प्रतिनिधि होगा।
4. नव-निर्वाचित प्रतिनिधि परिषद् की प्रथम बैठक की अध्यक्षता गत् प्रतिनिधि परिषद् के सभाध्यक्ष द्वारा नया सभाध्यक्ष चुने जाने तक की जावेगी।
5. संघ का महामंत्री केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् का भी महामंत्री होगा।

 

(17)
1. केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के सभाध्यक्ष, उपसभाध्यक्ष, केन्द्रीय कार्यकारिणी के प्रान्तीय अध्यक्ष तथा ट्रिब्युनल के अध्यक्ष का निर्वाचन करना।
2. वार्षिक बजट स्वीकृत करना।
3. वार्षिक प्रतिवेदन तथा आय-व्यय के वार्षिक चिट्ठे स्वीकृत करना।
4. संघ के आय-व्यय के केन्द्र तथा शाखाओं के अंकेक्षण के लिये अंकेक्षक नियुक्त करना।
5. संविधान में परिवर्तन एवं संशोधन करना।
6. केन्द्रीय कार्यकारिणी का मार्गदर्शन करना।
7. संघ की नीति निर्धारित करना।
8. केन्द्रीय कार्यकारिणी के समस्त कार्य व शक्तियां प्रतिनिधि परिषद् में निहित होगी।
9. प्रत्येक सदस्य व्यक्तिगत् रूप से एवं संयुक्त रूप से प्रतिनिधि परिषद् केन्द्रीय कार्यकारिणी के प्रति उत्तरदायी होगा।

 

(18) केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के सभाध्यक्ष व उपसभाध्यक्ष का निर्वाचनः-
1. सभाध्यक्ष व उपसभाध्यक्ष का चुनाव नवनिर्वाचित परिषद् की पहली बैठक में गोपनीय मतदान या सर्वसम्मति से प्रतिनिधि परिषद् के सदस्योंं द्वारा होगा।
2. सभाध्यक्ष, उपसभाध्यक्ष का पद पदत्याग अथवा अन्य किसी कारण से रिक्त होता है, तो नये सभाध्यक्ष/उपसभाध्यक्ष का चुनाव प्रतिनिधि परिषद् की आगामी बैठक में होगा।
3. प्रतिनिधि परिषद् की बैठक में सभाध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपसभाध्यक्ष एवं दोनोंं की अनुपस्थिति में उपस्थित सदस्य उस बैठक के लिये कार्यवाहक सभाध्यक्ष चुनेगा।

 

(19) केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् की बैठक तथा उसकी कोरमः-
1. प्रतिनिधि परिषद् की बैठक वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य बुलाई जावेगी।
2. यदि प्रतिनिधि परिषद् के सदस्योंं में से 1/3 सदस्योंं द्वारा लिखित में प्रतिवेदन परिषद् के सभाध्यक्ष अथवा महामंत्री को प्रेषित किया जाता है, तो ऐसा लिखित प्रतिवेदन प्राप्त होने की एक माह की अवधि में प्रतिनिधि परिषद् की बैठक बुलाना अनिवार्य होगा।
3. विशेष परिस्थितियोंं में प्रतिनिधि परिषद् की बैठक कभी भी बुलाई जा सकती है।
(20)
1. प्रतिनिधि परिषद् की साधारण बैठक का गणपूरक 1/3 होगा, किन्तु महत्वपूर्ण मामलों में 2/3 होगा। निर्णय उपस्थिति के 3/4 बहुमत से होगा।
2. सभी साधारण विषयोंं पर बहुमत से निर्णय लिये जावेगें। दोनोंं पक्षोंं के समान मत होने पर सभाध्यक्ष का मत निर्णायक होगा।

 

(21) पदाधिकारियोंं के अधिकार एवम् कर्तव्यः-
(अ) सभाध्यक्ष/उपसभाध्यक्ष केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद्ः-
1. परिषद् की बैठकोंं की अध्यक्षता करना व सुचारू रूप से और नियमोंं के अनुसार संचालन करना।
2. नियम या प्रस्ताव के औचित्य पर यदि आवश्यकता समझे, तो व्यवस्था देना।
3. यदि केन्द्रीय कार्यकारिणी एक वर्ष के अन्तर की अवधि में भी परिषद् की बैठक बुलाने का निर्णय न कर सके, तो सभाध्यक्ष ऐसी बैठक बुला सकेगा।
4. प्रतिनिधि परिषद् के सदस्योंं में से 1/3 सदस्योंं द्वारा लिखित में प्रतिवेदन देने पर परिषद् की बैठक बुलाना, बैठक का स्थान व समय निश्चित करना।
5. आपातकालीन बैठक चाहे जब 15 दिवस की पूर्व सूचना पर आयोजित कर सकेगा।
6. आवश्यकता होने पर बैठक अथवा कार्यवाहियोंं स्थगित या समाप्त करना।
7. सभाध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपसभाध्यक्ष को उपरोक्त सभी अधिकार प्राप्त होगें।

(ब) प्रान्तीय अध्यक्ष/जिलाध्यक्षः-
1. कार्यकारिणी की बैठकोंं कार्यवाही सुचारू रूप से और नियमों के अनुसार संचालन करना व उसकी अध्यक्षता करना।
2. नियम या प्रस्ताव के औचित्य पर यदि आवश्यकता समझे, तो व्यवस्था देना।
3. संघ की समस्त गतिविधियोंं पर अपने स्तर पर नियंत्रण करना।
4. आपातकालीन स्थिति में कार्यकारिणी के अधिकारक्षेत्र में आने वाली शक्तियों का प्रयोग करेगा, जो वैधानिक मानी जावेगी। लेकिन इस प्रकार के निर्णयोंं को कार्यकारिणी की आगामी बैठक में संपुष्टि हेतु रखना अनिवार्य होगा।
5. विवादग्रस्त मामलोंं में समान मत जाने पर निर्णायक मत देना।
6. समस्त कार्यवाहियों पर हस्ताक्षर करना।
7. मनोनीत पदाधिकारीगण व सदस्यगणोंं कार्यकारिणी से निष्कासन का उन्हे पूर्ण अधिकार होगा।
8. धारा 7 के अनुसार अपने-अपने स्तर पर कार्यवाही सम्पन्न कराना।
9. प्रान्तीय अध्यक्ष धारा 8 (4) के अनुसार तदर्थ कमेटी नियुक्त कर सकता है।
10. प्रान्तीय अध्यक्ष धारा 11 के अनुसार केन्द्रीय कार्यकारिणी तथा जिलाध्यक्ष धारा 10 के अनुसार जिला कार्यकारिणी का गठन करेंगे प्रान्तीय अध्यक्ष द्वारा कार्यालय मंत्री का मनोनयन कहीं से भी किया जा सकेगा।
11. केन्द्रीय कार्यकारिणी की समस्त शक्तियां प्रान्तीय अध्यक्ष में निहित होगी और प्रान्तीय अध्यक्ष, केन्द्रीय कार्यकारिणी के बहुमत के आधार पर इन शक्तियों का उपयोग कर सकेगा।
12. संविधान में प्रदत्त समस्त अधिकार एवं शक्तियोंं का उपयोग तथा कर्तव्य की पालना प्रान्तीय अध्यक्ष/जिलाध्यक्ष द्वारा अपने-अपने स्तर पर करना।

 

(स) महामंत्रीः-
1. प्रान्तीय अध्यक्ष की अनुमति से सभी प्रकार की बैठकों को बुलायेगा एवं उनका संचालन करेगा।
2. सभी प्रकार की बैठकोंं विवरण तैयार करना और अगली बैठक में पढ़कर कार्यकारिणी की पुष्टि प्राप्त करना।
3. कार्यकारिणी द्वारा स्वीकृत प्रस्तावोंं एवं निर्णयोंं को क्रियान्वित करना तथा उनको करने के लिये आदेश देना।
4. जिला शाखाओं एवं उपशाखाओं का मार्गदर्शन करना एवं निर्देश देना तथा अपने सहायक पदाधिकारियों व सदस्योंं को निर्देश देना।
5. कार्यकारिणी के 1/3 सदस्योंं द्वारा लिखित में बैठक बुलाने की मांग करने पर बैठक बुलाने की कार्यवाही तथापि यह प्रान्तीय अध्यक्ष की अनुमति से हो या ना हो, इस प्रकार की बैठक वैधानिक मानी जायेगी।
6. केन्द्रीय कार्यालय पर नियंत्रण एवं पर्यवेषण रखेगा। कार्यालय में प्राप्त होने वाले समस्त पत्रों का उत्तर एवं पत्र व्यवहार स्वयं के स्वविवेक से भी कर सकेगा।
7. संघ का महामंत्री प्रतिनिधि परिषद् का भी महामंत्री होने  के नाते सभाध्यक्ष के निर्देशोंं की पालना करेगा व प्रतिनिधि परिषद् की बैठक का आयोजन सभाध्यक्ष के निर्देशानुसार करेगा। प्रतिनिधि परिषद् की कार्यवाही का विवरण लिखना व आगामी बैठक में कार्यवाही विवरण की पुष्टि कराना।
8. संविधान में प्रदत्त समस्त अधिकार व शक्तियोंं का उपयोग तथा कर्तव्योंं का पालन करना।

 

(22) अधिवेशनः-
संघ का प्रान्तीय अधिवेशन तीन वर्ष की अवधि में कम से कम एक बार होगा।

 

(23) निधियां :-
1. प्रवेश शुल्क की पूरी राशि तथा वार्षिक सदस्यता शुल्क की राशि में से ............. रूपये प्रति सदस्य प्रत्येक जिला शाखा को केन्द्रीय कार्यालय में जमा करवाना होगा। इस धनराशि के साथ सदस्योंं की सूची भी उपलब्ध की जावेगी। केन्द्रीय कार्यालय में सदस्यों से जो राशि सीधे ही प्राप्त होगी, उसकी सूचना संबंधित जिला शाखा को भेज दी जावेगी।
2. आवश्यकता पड़ने पर विशेष सहायता सदस्योंं अथवा अन्य स्रोतों से प्राप्त की जा सकेगी, सांस्कृतिक कार्यक्रम सिनेमा, स्मारिका आदि के द्वारा विज्ञापन इत्यादि अन्य  साधनोंं से भी संघ विशेष परिस्थितियोंं में धनराशि जुटायेगा।
3. एकत्रित धनराशि का उपयोग संघ द्वारा निर्दिष्ट प्रयोजनों के लिये किया जावेगा।
4. केन्द्रीय कार्यकारिणी के एक संकल्प के अनुसार निधियां किसी अधिकृत बैंक में जमा कर दी जायेगी। संघ की जिला शाखायें, उपशाखायें अपनी निधियां भी सुरक्षित अतिरक्ष के लिये इसी तरह का प्रबंधन करेगी।
5. केन्द्रीय कार्यालय के बैंक खाते से धन प्रान्तीय अध्यक्ष, महामंत्री और कोषाध्यक्ष में से किन्हीं दो हस्ताक्षरों से निकाला जायेगा।
6. जिला शाखा के खाते से धन जिलाध्यक्ष, मंत्री और कोषाध्यक्ष में से किन्हीं दो के हस्ताक्षरों से निकाला जायेगा।
7. प्रत्येक शाखा निर्धारित रिपोर्ट, आय-व्यय का विवरण व पारित प्रस्ताव केन्द्रीय कार्यालय को निर्धारित समय में भेजेंगे। 
8. इस संघ से संबंधित समस्त सदस्य कर्मचारियोंं के हितों के लिये एक कर्मचारी कल्याण कोष बनाया जायेगा।

 

(24) बजट एवं उसके व्यय की शक्तियां  :-
केन्द्रीय कार्यालय/जिला शाखा का आय-व्यय का वार्षिक बजट केन्द्रीय कार्यकारिणी/जिला कार्यकारिणी द्वारा स्वीकृत होगा।

 

(25)
1. बजट के अंतर्गत स्वीकृत शीर्ष में से निम्नांकित व्यय किसी भी समय, किसी एक विशेष प्रयोजन के लिये अनुमत होगा। 

क्र.सं.     अधिकृत केन्द्र शाखा
1.         कार्यकारिणी पूर्ण अधिकार पूर्ण अधिकार
2.        अध्यक्ष/जिलाध्यक्ष 1200/- 400/-
3.        महामंत्री /मंत्री 400/- 200/-
2.        जिला शाखाएं

सम्बद्ध उपशाखाओं को काम चलाऊ धनराशि अग्रिम के रूप में देगी। उपशाखाएं उसका अलग से हिसाब रखेगी, जिसकी समय-समय पर जिला शाखा द्वारा जांच की जावेगी। 

(26)
संघ का वर्ष 01 जनवरी से 31 दिसम्बर तक का होगा।

 

(27) विधान प्रारम्भ  होने की तिथिः-
संघ का संविधान 09 जुलाई 1977 से प्रारम्भ हुआ है, लेकिन संशोधित संविधान गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1983 से प्रभावशील होगा एवं वर्तमान संशोधित संविधान दिनांक 01 जनवरी 1992 से प्रभावशील होगा।

(28) शाखा पद्धतिः-
1. जब किन्हीं विशेष परिस्थितियों के कारण केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् की बैठक करना संभव नहीं हो तो तथा किसी महत्वपूर्ण मामलोंं पर निर्णय लिया जाना आवश्यक हो, तो प्रतिनिधि परिषद् के सदस्योंं की राय भ्रमण पत्र से ली जावेगी।
2. यदि केन्द्रीय कार्यकारिणी व्यवस्था दे, कि किसी मामले पर शाखा पद्धति से निर्णय लिया जाये, तो महामंत्री सम्बद्ध शाखाओं के जरिये निर्धारित तिथि से कम से कम एक माह पहले समस्त प्रतिनिधि परिषद् के सदस्यों को इसकी अधिसूचना देगा। यदि कोई गम्भीर और महत्वपूर्ण मामला विचार के लिये पड़ा हो, तो जब तक मतों के 3/4 द्वारा उसका समर्थन न किया जाये, तब तक उपरोक्त कार्यवाही नहीं की जा सकेगी। शर्त यह है कि मत देने वाले प्रतिनिधि सदस्य की कुल संख्या के 2/3 से कम न हो।
3. भ्रमण पत्र की प्रणाली का निश्चय प्रत्येक मामले से परिस्थितियोंं के अनुसार केन्द्रीय कार्यकारिणी द्वारा किया जायेगा। ताकि मतदान की सुविधा तथा भ्रमण पत्र की गोपनीयता सुरक्षित रखी जा सके। 

(29) विघटनः-
1. जब तक केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् की किसी बैठक में जो स्पष्टतः विघटन के लिये बुलाई गई हो, सदस्योंं के तीन चौथाई संख्या विघटन के प्रस्ताव के पक्ष में मत नहीं देगी, संघ विघटित नहीं किया जावेगा। 
2. केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् की किसी बैठक में जो किसी इस प्रयोजन के लिये बुलाई गई हो, विघटन का निश्चय कर लेने के पश्चात् संघ का विघ्टन प्राप्त करने के प्रयोजन से लेखा परीक्षक प्रान्तीय अध्यक्ष, महामंत्री तथा संयुक्त मंत्री, संगठन मंत्री, कोषाध्यक्ष की एक विघटन कमेटी नियुक्त की जावेगी। इस कमेटी में कम से कम 10 पदाधिकारी व सदस्यगण होंगे। यह कमेटी विघटन की तिथि तथा खाता तैयार करेगी तथा संघ के पास वाली धनराशि का भुगतान कर देने तथा विघटन से संबंधित व्यय का समायोजन कर देने के पश्चात् शेष चल व अचल सम्पत्ति केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के आदेशानुसार वितरित कर देगी।

(30) अतिशिष्ट शक्तियां :-
1. उन मामलोंं पर जिनके लिये नियमोंं में प्रावधान नहीं है तथा जो संविधान के अंतर्गत प्रावधान करने के लिये अपेक्षित समय के लिये स्थगित नहीं किये जा सकते है, केन्द्रीय कार्यकारिणी द्वारा विचार किया जा सकता है। इसका निर्णय आवश्यक रूप से पालनीय होगा, किन्तु ऐसे निर्णय केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् की आगामी बैठक में संपुष्टि हेतु रखे जायेगें।
2. केन्द्रीय कार्यकारिणी के निर्देश के विपरीत जिला शाखा, उपशाखा कोई प्रस्ताव पारित नहीं कर सकेगी, न उसके कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकेगी। यदि कोई बात जिला शाखा, उपशाखा के हित के विपरीत हो चुकी है, तो संबंधित जिले के केन्द्रीय पदाधिकारी अथवा केन्द्रीय प्रतिनिधि के माध्यम से समुचित कार्यवाही के लिये केन्द्रीय कार्यकारिणी को विषयवस्तु प्रेषित की जावेगी।

(31)

संविधान की धाराओं तथा उसके अंतर्गत बनाये गये नियमोंं उपनियमोंं का सही अर्थ, व्याख्या, भावार्थ, परिभाषा आदि में संदेह होने पर केन्द्रीय कार्यकारिणी का निर्णय मान्य होगा।

(32)

केन्द्र व जिला शाखाओं के हिसाब के देखरेख के लिये केन्द्र व जिला शाखाओं में केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् की एक कमेटी का गठन करेगी। जिसके सदस्य केन्द्रीय प्रतिनिधि परिषद् के सदस्योंं में से होंगे।
(33)

संघ के कार्यक्षेत्र में घटित होने वाले समस्त कार्यो के विषय में  कोई भी सदस्य न्यायालय में वाद प्रस्तुत नहीं कर सकेगा। इस संबंध में व्यक्ति सदस्य को संघ के द्वारा गठित ट्रिब्युनल में याचिका/प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने का अधिकार होगा।